



अखिल भारतीय श्री चैतन्य गौड़ीय मठ संस्था के महान वैष्णव संत जगत गुरु श्री श्रीमद्भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी का जन्म महा– महोत्सव पूरे विश्व में बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है
महाराज श्री 12 वैशाख सन 1924 को श्री रामनवमी की पावन तिथि को आसाम के ग्वालपाड़ा नामक शहर में प्रकट हुए। आपका लालन–पोषण भी धार्मिक एवं पवित्र वातावरण में हुआ। बचपन से आपका अध्यात्मिक्ता के प्रति रुझाव था। इसलिए विज्ञान एवं गणित के छात्र होने के बावजूद आत्मसाक्षात्कार की अनुभूिति की लालसा ने आपको दर्शनशास्त्र पढ़ने के लिए प्रेरित किया और सन् 1946 में कलकता विश्वविद्यालय से आपने M.A in philosophy की उपाधी प्राप्त की। संसार के प्रति वैराग्य और आत्मसाक्षात्कार हेतु उस समय के महान वैष्णव संत भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु के पार्षद परमहंस श्री माधव गोस्वामी महाराज जी से विक्षा (सन्यास) ग्रहण कर अपना जीवन उनके चरणों में समर्पित कर दिया एवं लगातार 30 साल उनके सानिध्य में कठोर साधना एवं जीव कल्याण हेतु सनातन धर्म के संदेश को जन–जन तक पहुँचाने के लिए नाना प्रकार के कष्टों को सहन विभिन्न राज्यों के गाँव–गाँव और शहर–शहर भ्रमण किया और शील गुरूदेव के अप्रकट के पश्चात मठ के प्रधानाचार्य के पद को ग्रहण किया एवं अपनी मंडली के साथ विश्व के कोने–कोने में सनातन धर्म का परचम फहराया।
महाराज जी का यह कहना है कि कि हमारे द्वारा दी गयी शिक्षा सामने वाले के हृदय को उतना ही स्पर्श करती है जितना उस शिक्षा का हम अपनेे जीवन में स्वयं आचरण कर रहे होते हैं, इस लिये पहले स्वयं आचरण कर फिर शिक्षा , तभी कल्याण सम्भव हैश्रीराम नवमी के विषय में महाराज श्री के वचन है कि
जब–जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का उत्थान होता है तब तब भगवान प्रकट होकर धर्म की स्थापना करते हैं । भगवान के जन्म का रहस्य बताते हुये कहते हैं कि
कई लोगों के मन में यह विचार आता है कि भगवान श्री रामचंद्र जी के तो माता–पिता जी हैं तो भगवान कैसे हुए? तो ऐसे व्यक्तियों को समझना चाहिए कि भगवान का समान्य बालक की तरह जन्म नही होता है उनका दिव्य जन्म होता उनका आविर्भाव होता है।
आविर्भाव शब्द का अर्थ है “अवतरण करना , उतरना । अपने नित्य अयोध्या धाम से इस पृथ्वी पर उतरने को ही आविर्भाव कहा जाता है। इसलिए तुलसीदास ने लिखा भी है भय प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी…….।
और विशेष जानने योग्य बात यह है कि भगवान का कोई भी माता–पिता नहीं है। जिस प्रकार सूर्य पूर्व दिशा से उदित होते हैं किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि पूर्व दिशा सूर्य की जननी है। अपितु उस दिशा के अहौभाग्य हैं जिस दिशा को अवलंबन करके सूर्य देव प्रकट हुए हैं । उसी प्रकार श्रीमति कौशल्या देवीऔर श्री दशरथ जी रामचंद्र जी के कोई माता–पिता नहीं है अपितु वात्सल्य रस के भक्त हैं उन्हें वात्सल्य रस का आनंद प्रदान करने के लिए भगवान उनको अवलंबन करके प्रकट हुए।
भगवान इस भूधरा पर प्रकट होकर अपने भक्तों को परमानंद प्रदान करते हैं और समस्त जीवों को शास्त्र की तमाम शिक्षाओं का स्वयं आचरण करके शिक्षा देते हैं और उन के परम मंगल का ररस्ता दिखाते हैं।
महाराज श्री का कहना है कि छोटे बच्चे कच्चे घड़े के समान होते हैं उन पर जो भी अंकित करना चाह कर सकते हैं लेकिन घड़ा पक जाने के बाद टूट जाता है उसे पर कुछ अंकित नहीं किया जाता है उसी प्रकार छोटे बच्चों का हृदय में आप जो भी संस्कार देंगे वह हमेशा के लिए अंकित हो जाते हैं, उनको अगर परब्रह्म भगवान श्री राम की शिक्षाए्ं कि भगवान किस प्रकार से अपने गुरू एवं माता–पिता के श्री चरणों का स्पर्श करते थे। छोटे भाई के साथ केसा व्यवहार करते बड़ों के साथ कैसा व्यवहार करते थे? जब भाइयों के साथ खेलते थे तो हमेशा अपने छोटे भाइयों से हार जाया करते थे ,छोटे भाइयों को प्रसन्न करने के लिए।
और भगवान श्री राम जी की अद्भुत लीला में देखा जाता है। प्रत्येक भाई बाकी भाईयों के लिये अपना सब कुछ न्यो़छावर करना चाहता है। इसलिए उनकी शिक्षाओं का अनुसरण कर निश्चित रूप से एक अच्छे चरित्र वाली सन्तान एवं अच्छे राष्ट्र का निर्माण हो सकता है ,पूरे विश्व में राम राज्य स्थापित हो सकता है। पूरे विश्व शांति स्थापित हो सकती है ।
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जनसाधारण के लिए यह संदेश देते हुए कहते है कि भगवान श्री कृष्ण हम सबके स्वामी है वही श्री राम इत्यादि सब के अवतार लेकर आते हैं तमाम जीव उनके दास हैं। भगवान से संबंध होने के कारण सभी जीव एक दूसरे से संबंधित है। जिस प्रकार एक व्यक्ति यदि किसी से प्यार करता है तो वह उसके शरीर के किसी भी अंग को हानि नहीं पहुंचा सकता है । यहां तक कि उससे संबंधित किसी वस्तु को हानि नहीं पहुंचा सकता उसी प्रकार अगर मैं श्री कृष्ण से प्रेम करता हूं तो उनसे संबंधित किसी भी जीव को में कष्ट नहीं दे सकता अपिति सब का सब से स्वभाविक ही प्रेम हो जायेगा । यही वसुदेव कुटुंबकम का सही परिभाषा है ।
भक्ति विबुद्ध मुनी
अखिल भारतीय
श्री चैतन्य गौड़ीय मठ