



परिजनों ने हजारों ख्वाहिशों के पंख लगाकर अपने जिगर के टुकड़ों को विदेश भेजा था। किसी ने घर के हालात सुधारने की सोची थी तो किसी ने बच्चों की जिंदगी बेहतर करने का ख्वाब संजोया था। लेकिन 104 भारतीयों के डिपोर्टमेंट से सपने चकनाचूर हो गए। कर्ज लेकर या जमीन बेचकर बच्चों को विदेश भेजने वाले अभिभावकों ने कभी सोचा भी नहीं था कि वे हथकड़ियों में जकड़े देश लौटेंगे। बुधवार को अमेरिका ने विशेष विमान से 104 भारतीयों को डिपोर्ट कर दिया। ये सभी अवैध तरीके से अमेरिका में घुसे थे। लाखों खर्च कर विदेश गए इन लोगों के कारण अब इनके परिवारों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। फतेहगढ़ साहिब के सबडिवीजन अमलोह में एक मध्यवर्गीय किसान परिवार का बेटा जसविंदर सिंह करीब दो-तीन महीने पहले यूरोप के वीजा पर विदेश पहुंचा था और उसके बाद मैक्सिको बॉर्डर पर उसकी गिरफ्तारी हो गई। सूत्रों के मुताबिक, जसविंदर सिंह अमलोह में गांव काहनपुरा का निवासी है। उसके पिता मंडी गोबिंदगढ़ में ही मिठाई की दुकान चलाते हैं और उनका दूध का छोटा-मोटा कारोबार भी है। जसविंदर सिंह के बारे में यह जानकारी भी मिली है कि वह यहां पिता के साथ दूध बेचने का भी काम करता रहा है। उसका बड़ा भाई शादीशुदा है, लेकिन अमेरिका जाने की इच्छा ने उनका करीब 45 लाख रुपये का नुकसान किया है। सूत्रों से जानकारी यह भी मिली है कि गत 15 जनवरी को वह मैक्सिको बॉर्डर पर गिरफ्तार हो गया और वहीं से उसका भारत वापस डिपोर्ट किया गया।अमेरिका से डिपोर्ट किए गए भारतीयों में दो लोग टांडा से हैं। इनमें से एक तो करीब एक माह पहले ही अमेरिका पहुंचा था, जबकि दूसरा आठ माह पहले इटली गया था लेकिन वहां से वह अमेरिका कैसे पहुंचा, इसकी फिलहाल जानकारी नहीं। परिवार के मुताबिक, गांव टाहली का हरविंदर सिंह पिछले महीने अवैध रूप से सीमा पार कर अमेरिका में घुसा था और पकड़े जाने के बाद से ही वहां के एक डिटेंशन कैंप में था। हरविंदर की पत्नी कुलजिंदर कौर ने बताया कि वह आठ महीने पहले घर से अमेरिका गया था और एजेंट ने उसे एक नंबर में यानी वैध तरीके से अमेरिका भेजने की बात की थी। कुलजिंदर कौर ने बताया कि 42 लाख रुपये लेने के बावजूद गांव के ही एक एजेंट ने उन्हें कानूनी तरीके से अमेरिका भेजने के बजाय धोखे से उसके पति को डौंकी के जरिये अमेरिका भेजा दिया। उसके पति ने 15 जनवरी को उसे संदेश भेजकर बताया कि वह सीमा पार कर अमेरिका पहुंच गया है। इसके बाद उससे कोई संपर्क नहीं हो पाया और अब उन्हें उसके स्वदेश लौटने की सूचना मिली।दूसरा व्यक्ति दारापुर टांडा का निवासी सुखपाल है, जो आठ महीने पहले वर्क परमिट पर इटली गया था और बाद में अमेरिका में प्रवेश करते समय पकड़ा गया था। उसके पिता ने कहा कि उन्हें सुखपाल के अमेरिका से डिपोर्ट किए जाने के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी तो नहीं है, बल्कि मीडिया रिपोर्ट के माध्यम से ही उन्हें जानकारी मिली है। उन्होंने बताया कि सुखपाल पिछले साल अक्टूबर में वर्क परमिट पर इटली गया था। आखिरी बार उन्होंने उससे 22 दिन पहले बात की थी। उसने इस बारे में जानकारी साझा नहीं की कि वह वहां से अमेरिका कैसे पहुंचा था।अमृतसर के राजाताल के सीमावर्ती गांव के वासी स्वर्ण सिंह का बेटा आकाशदीप सिंह भी सात महीने पहले अमेरिका गया था। उसे डोनाल्ड ट्रंप सरकार ने 104 भारतीयों के साथ भारत वापस भेज दिया तो स्वर्ण सिंह के पैरों तले की जमीन खिसक गई। उनका पूरा परिवार गहरे सदमे में है। आकाशदीप सिंह दुबई होते हुए मैक्सिको गया और मैक्सिको से अमेरिका गया। आकाशदीप करीब सात महीने पहले घर से चला गया था। उनके परिजन मोबाइल फोन पर उनसे बात करते थे लेकिन जब वह अमेरिका चला गया तो उनके फोन पर कोई बातचीत नहीं हुई।ट्रंप प्रशासन द्वारा लागू नए कानूनों के तहत आकाशदीप सिंह को 12 दिन पहले मैक्सिको से सीमा पार करते समय गिरफ्तार कर लिया गया था और परिवार से आकाशदीप की बातचीत बंद हो गई थी। गांव के निवासियों ने बताया कि आकाशदीप सिंह के पिता स्वर्ण सिंह के पास तीन एकड़ जमीन थी, जिसमें से उन्होंने ढाई एकड़ जमीन बेचकर 18 लाख रुपये की लिमिट के साथ ऋण लिया। इस तरह बेटे को अमेरिका भेजने पर 65 लाख रुपये खर्च किए।आकाशदीप के पिता ने बताया कि उनके बेटों को यहां रोजगार नहीं मिल रहा था, जिस कारण उन्होंने अपने एक बेटे को अमेरिका भेजा था। अब उन्होंने केंद्र सरकार और पंजाब सरकार से मदद की मांग की है, ताकि उन्हें कर्ज से राहत मिल सके। अपने पति दिलेर सिंह को लेने एयरपोर्ट पर पहुंचीं चरणजीत काैर ने एजेंट द्वारा 60 लाख रुपये लेकर पति को अमेरिका भिजवाने की बात कही। उनका पति अमृतसर में बस चलाता था। उनके दो बच्चे हैं। करीब छह महीने पहले एजेंट की बातों में आकर उनके पति अमेरिका जाने के लिए मान गए और उन्होंने 40 लाख रुपये का इंतजाम कर उन्हें दिए। एजेंट ने पति को पहले दुबई भेजा, जहां करीब 10-15 रहने के बाद पति को एजेंटों ने आगे रवाना किया। इसके बाद से उनका पति से संपर्क पूरी तरह टूट गया था। उन्हें तो यह भी पता नहीं था कि उनका पति वहां जिंदा भी हैं या नहीं। एजेंटों ने बीस लाख रुपये उनसे और मांगे जो उन्होंने किसी तरह दिए। इसके बाद 15 जनवरी को दिलेर सिंह को अमेरिका रवाना कर दिया गया और वह 23 जनवरी को वहां पहुंचे थे।एक अन्य व्यक्ति भी बेटे को लेने एयरपोर्ट पर पहुंचे थे। उन्होंने अपना नाम तो नहीं बताया लेकिन एजेंटों द्वारा ठगे जाने का दर्द छलक पड़ा। उन्होंने जमीन बेचकर बेटे को विदेश भेजा था। उन्होंने कहा कि उनके पास तीन एकड़ जमीन थी, जिसे उन्होंने बेचा और करीब पचास लाख रुपये लगाकर एक साल पहले बेटे को अमेरिका भेजा था। एजेटों ने उनसे कहा था कि उनका बेटा सुरक्षित अमेरिका पहुंच जाएगा और काम पर भी लग जाएगा लेकिन करीब चार महीने जंगलों में भटकने के बाद वह वहां पहुंचा और अब उसे वापस डिपोर्ट कर दिया गया है।स्वदेश लौटे अधिकतर भारतीयों ने बताया कि अमेरिका से जितने भी लोगों को यहां भेजा गया था, वह सभी एजेंटों के ही जरिये 40 से 50 लाख रुपये की रकम लगाकर वहां गए थे। एजेंटों की ओर से उन्हें ‘डौंकी’ लगाकर भेजा जाता है, जिसमें सब पनामा, मैक्सिको के जंगलों के रास्ते अमेरिका के बाॅर्डर पर पहुंचने के बाद दीवार फांदकर अमेरिका में प्रवेश करते हैं। चिंताजनक यह भी कि जंगलों में मिलने वाले माफिया की ओर से उनका सारा सामान भी लूट लिया जाता है। जो लोग उन्हें जंगलों के रास्ते अमेरिका लेकर जाते हैं, वह उनके पासपोर्ट तक छीन लेते हैं। अमेरिका सरकार की ओर से इन्हें डिपोर्ट करते समय भारतीय दूतावास की ओर से एक टेंपरेरी सर्टिफिकेट जारी किया जाता है, जो भारत पहुंचते ही वापस ले लिया जाता है।