झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने नई पार्टी बनाने का किया एलान

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने नई पार्टी बनाने का एलान कर दिया है। उन्होंने कहा है कि वे राजनीति से सन्यास नहीं लेंगे और अपने सभी समर्थकों से मिलने के बाद नई पार्टी बनाने का एलान करेंगे। पार्टी बनाने के पहले ही चंपई सोरेन ने साफ कह दिया है कि यदि कोई साथी मिलता है, तो वे गठबंधन करने से परहेज नहीं करेंगे। उनके रास्ते खुले हैं। झारखंड में जिस तरह की चुनावी परिस्थितियां हैं, माना जा रहा है कि चुनाव पूर्व या चुनाव के बाद चंपई सोरेन भाजपा के साथ जा सकते हैं। चूंकि, चंपई सोरेन की खुली बगावत हेमंत सोरेन से है, वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ नहीं जाएंगे। झारखंड में विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन के अंतर्गत हेमंत सोरेन बिहार मॉडल को अपनाते हुए कांग्रेस, राजद और वाम दल साथ मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं। ऐसे में चंपई सोरेन का स्वाभाविक साथी एनडीए ही हो सकता है। चंपई सोरेन एनडीए के घटक दल के रूप में चुनावी लड़ाई लड़ते हैं, यह बड़ी खबर नहीं है। ज्यादा बड़ी खबर यह है कि उन्होंने भाजपा क्यों ज्वाइन नहीं की? रांची पहुंचने से पहले चंपई सोरेन तीन दिनों तक दिल्ली में थे और राजनीतिक गलियारों में लगातार यह कयास लगाए जा रहे थे कि देरसबेर वे भाजपा ज्वाइन कर सकते हैं। लेकिन लंबे इंतजार के बाद भी चंपई सोरेन ने भाजपा ज्वाइन नहीं की। बल्कि रांची पहुंचकर नई पार्टी बनाने का एलान कर उन्होंने अपने समर्थकों को भी चौंका दिया। दरअसल, झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा का पूरा दांव हेमंत सोरेन सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार पर है। वह इसे पुरजोर तरीके से उठा रही है। लेकिन जैसे ही चंपई सोरेन के भाजपा ज्वाइन करने की खबरें मीडिया में चलने लगी थीं, हेमंत सोरेन यह कहते हुए भाजपा पर हमलावर हो गए थे कि भाजपा दूसरी पार्टियों को तोड़ने का काम करती है। यदि हेमंत सोरेन यह कहकर सहानुभूति का लाभ पाने में सफल रहते कि भाजपा ने जानबूझकर उनका घर तोड़ा है, तो भाजपा को चंपई सोरेन से वह लाभ नहीं मिल सकता था जिसकी उम्मीद लगाई जा रही है। भाजपा इसी सहानुभूति की लहर का नुकसान महाराष्ट्र में उठा चुकी है, जहां एकनाथ शिंदे और अजित पवार को साथ लेने के बाद भी वह लोकसभा चुनाव में कोई बढ़त नहीं बना पाई। शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने केवल अपनी जमीनी पकड़ बरकरार रखी, बल्कि अपने सांसदों को जिताने में भी सफलता हासिल की। माना जाता है कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे को मिली इस सफलता के पीछे सहानुभूति का फैक्टर ही सबसे अधिक जिम्मेदार रहा है। ऐसे में भाजपा झारखंड में भीमहाराष्ट्र मॉडलविकसित नहीं होने देना चाहती थी। माना जा रहा है कि यह देखते हुए ही एक सहमति के अंतर्गत चंपई सोरेन को बाहर रहकर हेमंत सोरेन का वोट काटने का काम सौंप दिया गया है।चंपई सोरेन झारखंड के सबसे बड़े आदिवासी समुदाय के प्रभावी नेता के तौर पर जाने जाते हैं। वे हेमंत सोरेन के पिता के साथी रहे हैं और आंदोलन के दिनों से ही उन्हें झारखंड के संघर्ष करने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है। यही कारण है कि हेमंत सोरेन को भी इस बात का एहसास है कि चंपई सोरेन उनका बड़ा नुकसान कर सकते हैं।  बिहार की तरह झारखंड में भी भाजपा को नयाजीतन राम मांझीमिल गया है। आदिवासी मतदाताओं के बीच दो फाड़ कर वे भाजपा की जीत की राह आसान कर सकते हैं। चूंकि, पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा की आदिवासी मतदाताओंअनुसूचित जाति के मतदाताओं पर भाजपा की पकड़ ढीली पड़ी थी, चंपई सोरेन जैसे नेता उसकी यह पकड़ मजबूत बनाने में मदद कर सकते हैं।  

 

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