हैरिटेज सिटी कपूरथला के श्री सत्यनारायण मंदिर में श्रीमद भागवत कथा

कलयुग में भगवान को प्राप्त करने का एकमात्र साधन श्रीमद्भागवत कथा – स्वामी हृदयानंद गिरि महाराज

 

ट्रिब्यून  टाइम्स  न्यूज

कपूरथला, 31 मार्च :

हैरिटेज सिटी कपूरथला के श्री सत्यनारायण मंदिर में श्रीमद भागवत कथा में कथा वाचक  स्वामी हृदयानंद गिरि महाराज जी कहा कि कलयुग में भगवान को प्राप्त करने का एकमात्र साधन श्रीमद्भागवत कथा है. उन्होंने कहा कि भगवान के तीन रूप हैं. पहला रूप सत्य है और भगवान सत्य रूप में हैं. सत्य वही है जो सर्वदा एक समान रहता है. भगवान का दूसरा रूप चैतन्य है और तीसरा रूप आनंद स्वरूप है. भगवान का भजन हमेशा आनंद मय रहता है. संसार के हर आनंद का कभी ना कभी अंत होता है. भगवान का काम संसार की सृष्टि की रचना करना और दूसरा जिसका जन्म हुआ, का पालन करना और तीसरा कार्य सृष्टि का विनाश करना है. उन्होंने कहा कि जिसने जैसा कर्म किया है, उसे उसका फल जरूर मिलता है. जीवन को भक्ति के मार्ग में लगाएं तो जीवन आनंदमय होगा. कलयुग में लोगों के पास समय की कमी है. सतयुग में सभी भगवान की प्राप्ती के लिए यज्ञ करते थेपरंतु अब समय की कमी के कारण लोग यज्ञ नहीं कर रहे हैं. कलयुग में भगवान की प्राप्ति का एक मात्र साधन श्रीमद् भागवत है. भागवत कथा के प्रभाव से काल भी भाग जाता है. भगवान की कथा अमृत से भी ज्यादा लाभप्रद है. भागवान की कथा से जीवन को मुक्ति मिलती है और अमृत से जीवन को अमरत्व प्राप्त होता है. संसार में हर जीव के पास कष्ट है. संसार में सुख का होना जीवन का सफल होना नहीं है.जीवन सफल तभी होगा जब जीवन को मुक्ति मिलेगी. उन्होंने कहा कि साधु और गुरू वैसा होना चाहिए जिसके दर्शन मात्र से जीवन की सारी समस्याएं समाप्त हो जाए. जीवन में जब भी समय मिले भक्ति भाव से भगवान नाम का संकीर्तन करें. जीवन को मोक्ष की प्राप्ति होगी, स्वामी हृदयानंद गिरि महाराज जी ने कहा कि भक्त प्रह्लाद ने माता कयाधु के गर्भ में ही नारायण नाम का मंत्र सुना था। जिसके सुनने मात्र से भक्त प्रह्लाद के कई कष्ट दूर हो गए थे। कथा का आगाज गुरु वंदना के साथ किया गया। स्वामी हृदयानंद गिरि महाराज जी कहा कि मनु और शतरूपा के दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं। पुत्रों के नाम प्रियव्रत और उत्तानपाद। राजा उत्तानपाद की दो रानियां थीं। एक का नाम सुरुचि और दूसरी का नाम सुनीति था। राजा सुरुचि को अधिक प्यार करते थे। उनके पुत्र का नाम उत्तम और सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था। बालक ध्रुव एक बार पिता की गोद में बैठने की जिद करने लगता है लेकिन सुरुचि उसे पिता की गोद में बैठने नहीं देती है। ध्रुव रोता हुआ मां सुनीति को सारी बात बताता है। मां की आंखों में आंसू जाते हैं और वह ध्रुव को भगवान की शरण में जाने को कहती हैं। पांच वर्ष का बालक ध्रुव राज्य छोड़कर वन में तपस्या के लिए चला जाता है। नारद जी रास्ते में मिलते हैं और ध्रुव को समझाते हैं कि मैं तुम्हें पिता की गोद में बैठाउँगा लेकिन ध्रुव ने कहा कि पिता की नहीं अब परम पिता की गोद में बैठना है। कठिन तपस्या से भगवान प्रसन्न हो वरदान देते हैं। भक्त प्रहलाद की कथा सुनाते हुए व्यास जी ने कहा कि पिता अगर कुमार्ग पर चले तो पुत्र का कर्तव्य है उसे सही मार्ग पर लाए। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाबजूद प्रहलाद ने भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा। भगवान ने नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध कर अपने परमधाम को पंहुचाया। इस अवसर पर श्री सत्यनारायण मंदिर के नरेश गोसाई, राजेश सूरी, रोहीत अग्रवाल,  अनील अग्रवाल , रविंदर अग्रवाल, पुलकित सूरी, वीक्रम गुप्ता  के अलावा बड़ी संख्या में भक्तजन गणमान्य शामिल थे। 

 

 

 

 

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