27 साल बाद दिल्ली दरबार के भगवामई होते ही पंजाब को सियासी समीकरणों से साधने के प्रयास होंगे

27 साल बाद दिल्ली दरबार के भगवामई होते ही अब पंजाब को सियासी समीकरणों से साधने के प्रयास होंगे। पंजाब में अकाली दल के साथ गठबंधन में लंबे समय तक सत्ता का सुख भोगने वाली भाजपा प्रदेश में अपने ग्राफ को बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। सियासी गलियारों की अगर बात करें तो दिल्ली में हुए इस फेरबदल का सीधा असर पंजाब की राजनीति पर पड़ेगा। पंजाब में अकाली और भाजपा के 23 साल पुराने रिश्तों में दरार आने का सीधा फायदा कांग्रेस को और 2022 में आप को हुआ था। अब राजनीतिक परिदृश्य बदलने की चाह रखने वाले सियासी धुरंधर भी चाहते हैं कि पंजाब में अकालीभाजपा गठबंधन पर जमी बर्फ को पिघलाया जाए। भाजपा एक बार फिर बड़े भाई की भूमिका में अकाली दल के सहारे प्रदेश में चुनाव लड़ सकती है। किसान आंदोलन के कारण गठबंधन की राह से अलग हुए भाजपा और अकाली दोनों को ही नुकसान हुआ, लेकिन सबसे ज्यादा चोट अकाली दल को पहुंची। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में 6.60 प्रतिशत वोट हासिल करने वाली भाजपा का बीते लोकसभा चुनाव में वोटिंग शेयर 18.5 प्रतिशत तक पहुंचा। जोकि पार्टी के लिए अब तक का सर्वाधिक वोट प्रतिशत दर्ज किया गया।2012 में अकाली दल का वोट प्रतिशत 34.75 था, जोकि 2017 में घटकर 25.2 प्रतिशत रहा गया था। किसान आंदोलन के कारण अकालीभाजपा का गठबंधन टूटने के कारण 2022 में अकाली दल का वोटिंग प्रतिशत 18.38 रह गया। किसानों की नाराजगी, बेअदबी की घटनाओं और पार्टी में अंर्तकलह की वजह से 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का वोटिंग शेयर 13.42 प्रतिशत रहा गया। हालांकि अकाली दल एक सीट हासिल करने में कामयाब रही। ऐसे में अकाली दल के लगातार गिरते ग्राफ को और पार्टी को दोबारा मजबूत स्थिति में लाने के लिए सियासी जानकार गठबंधन की राह पर लौटने की सियासी हिदायतें देते नजर रहे हैं।प्रदेश में बीते लोकसभा चुनाव से लेकर उपचुनाव, पंचायत चुनाव और फिर नगर निगम चुनावों में कांग्रेस प्रदेश में एक मजबूत विपक्ष के रूप में भूमिका निभाते नजर रही है। यही कारण है कि पार्टी हाईकमान ने पंजाब में उनके प्रदेशाध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग के लुधियाना से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भी कमान उनके हाथों में ही रखी। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के करीबी राजा वड़िंग और अनुभवी नेता प्रतिपक्ष के रूप में प्रताप सिंह बाजवा के सहारे कांग्रेस लोकसभा चुनाव के बाद से ही पंजाब की दोबारा किलेबंदी में जुटी है। सत्ता में होते हुए भी आप लोकसभा चुनाव में केवल तीन सीट हासिल करने और कांग्रेस 7 सीट निकालने में कामयाब रही थी।लोकसभा चुनाव में खडूर साहिब से रिकॉर्ड तोड़ मतों के साथ जीत दर्ज करने वाले सांसद अमृतपाल सिंह ने भी सियासी समीकरण बिगाड़ने शुरू कर दिए हैं। असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद सांसद अमृतपाल ने प्रदेश में अपनी नई पार्टी का ऐलान भी कर दिया। इस नए दल के जरिए वह प्रदेश के हार्ड लाइनर, पंथक मुद्दों को आगे करते हुए प्रदेश की नई पार्टी के रूप में पहचान बनाने में जुटी है।

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