भौगोलिक व राजनीतिक दोनों नजर से मालवा पंजाब का सबसे बड़ा इलाका है। सूबे की 117 में से लगभग 58 प्रतिशत विधानसभा सीटें 69 इसी क्षेत्र में आती हैं। पंजाब माझा, मालवा व दोआबा तीन मुख्य क्षेत्रों में बंटी है। सूबे की 13 लोकसभा सीटों की सियासत भी निराली है। यहां के मतदाताओं का मिजाज भी बेहद जुदा है। पंजाब की सत्ता पर काबिज होने वाला ज्यादातर मालवा एरिया से संबंधित है। 1966 से 2022 तक 18 बार पंजाब के मुख्यमंत्रियों में 16 मालवा से हैं। इसलिए मालवा को ‘सियासत की धुरी’ के अलावा ‘जमींदारी बेल्ट’ के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यहां समृद्ध किसानों और जमींदारों के घर है। माझा एरिया को सिख धर्म के ‘पंथक’ (धार्मिक) बेल्ट के तौर पर जाना जाता है। इसे पंथक गढ़ भी कहा जाता है। इलाके में कई प्राचीन गुरुद्वारे और एक बहुत ही धार्मिक प्रवृति वाली आबादी रहती है, जो चुनावों में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। माझा को एक बार सीएम बनने का मौका मिला। माझा में 25 विधानसभा सीटें हैं, जो इसे चुनावी रूप से सूबे का दूसरा सबसे प्रभावशाली क्षेत्र बनाती है। दोआबा क्षेत्र दलित राजनीति के केंद्र के तौर पर विख्यात है। इसे एरिया को पंजाब के ‘एनआरआई बेल्ट’ के रूप में भी जाना जाता है। इस एरिया का दलित वोट बैंक देश में सबसे ज्यादा है और जीत–हार में निर्णायक भूमिका अदा करता है। दोआबा से भी एक ही बार कोई सीएम की कुर्सी पर बैठ सका। सियासी नजर से 23 विधानसभा सीटों से दोआबा पंजाब का सबसे छोटा क्षेत्र है। हालांकि यह क्षेत्र दलित वोटों की दृष्टि से अहम है। पंजाब माझा, मालवा व दोआबा तीन मुख्य क्षेत्रों में बंटी है। सूबे की 13 लोकसभा सीटों की सियासत भी निराली है। यहां के मतदाताओं का मिजाज भी बेहद जुदा है। इन 13 लोस सीटों में एक दिलचस्प सीट खडूर साहिब की है। यह एकमात्र ऐसी सीट है, जहां माझा, मालवा और दोआबा तीनों का सुमेल है। सबसे रोचक बात तो यह है कि माझा, मालवा व दोआबा के मतदाताओं के अलग मिजाज के चलते इन्हें साधना कोई आसान काम नहीं है। इन तक पहुंच बनाने के लिए प्रत्याशियों को न केवल नाकों चने चबाने पड़ते हैं, वहीं माझा से मालवा तक ‘जीत’ के लिए लंबी दौड़ लगानी पड़ती है। यूं कह लें कि प्रत्याशियों के एक लिहाज से ‘पंजाब’ घूमना पड़ता है।सबसे अहम बात यह है कि इस लोकसभा सीट में माझा के दो अमृतसर व तरनतारन, दोआबा का एक कपूरथला और मालवा का एक जिला फिरोजपुर लगता है। कुल नौ विधानसभा हलकों में जिला तरनतारन के चार, अमृतसर के दो, कपूरथला के दो और फिरोजपुर का एक हलका शामिल है। यहीं सूबे का एकमात्र ऐसा लोकसभा हलका है, जहां प्रत्याशियों को माझा से लेकर दोआबा तक प्रचार के लिए दौड–धूप करनी पड़ती है। खडूर साहिब हलके के माझा एरिया के जिला तरनतारन अधीन तरनतारन, खेमकरण, पट्टी, खडूर साहिब, अमृतसर का जंडियाला गुरु व बाबा बकाला, दोआबा एरिया के जिला कपूरथला अधीन कपूरथला व सुल्तानपुर लोधी और माझा एरिया अधीन जिला फिरोजपुर का जीरा विधानसभा क्षेत्र आता है। सियासी माहिरों का मानना है कि इस बार काफी तादाद में फर्स्ट वोटर अपनी वोट का इस्तेमाल करेंगे, जिन्हें प्रत्याशी अपने पाले में लाने में कामयाब रहे तो जीत की राह आसान बन जाएगी।हालांकि पंथक गढ़ के तौर पर खडूर साहिब माना जाता है, इसलिए इसका प्रभाव भी यहां मतदाताओं पर दिखता है। ऐसे में प्रत्याशियों में मतदाताओं की नब्ज पकड़ने के लिए नाकों चने चबाने पड़ सकते हैं। दूसरी अहम कड़ी यह है कि इस हलके का एरिया इतना लंबा है कि प्रत्याशी को एक छोर से दूसरे छोर तक चुनाव प्रचार करना भी कोई कम चुनौतीपूर्ण काम नहीं है। जीत के लिए प्रत्याशियों अच्छी–खासी मेहनत करनी पड़ेगी। पंजाब की सत्ता पर काबिज होने वाला ज्यादातर मालवा एरिया से संबंधित है। 1966 से 2022 तक 18 बार पंजाब के मुख्यमंत्रियों में 16 मालवा से हैं। इसलिए मालवा को ‘सियासत की धुरी’ के अलावा ‘जमींदारी बेल्ट’ के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यहां समृद्ध किसानों और जमींदारों के घर है।