बिल्वकेश्वर महादेव करते हैं हर मनोकामना पूरी, मात्र बेल पत्र चढ़ाने से ही प्रसन्न होते

 

 

 

 

 

श्रावण मास में जल चढ़ाने दर्शन को मंदिर में दूरदराज से कांवड़िये पहुंचते

 

ट्रिब्यून  टाइम्स  न्यूज

हरिद्वार, 30 जुलाई   ( रवि पाठक) :

 

बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शंकर मात्र बेल पत्र चढ़ाने से ही प्रसन्न होते हैं। श्रावण मास में जल चढ़ाने दर्शन को मंदिर में दूरदराज से कांवड़िये पहुंचते हैं। कांवड़िये मंदिर परिसर स्थित गौरी कुंड में स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं। त्रेता युग में अस्तित्व में आए बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर अति पवित्र, पापनाशक, सकल कामनादायक, पुत्रप्रद धनप्रद स्थल है। बिल्व पर्वत के नाम पर मंदिर को बिल्व तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। बिल्व तीर्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) रूप में फल देना वाला स्थल है। मंदिर के पूर्व भाग से निरंतर जल की धारा बहती रहती है।  बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण के केदार खंड में है। पुराणों के अनुसार, माता पार्वती ने तीन हजार वर्ष तक मंदिर परिसर में तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शाखा के रूप में दर्शन देकर माता पार्वती को विवाह का वरदान दिया था। तभी से यह स्थल बिल्वकेश्वर नाम से प्रसिद्ध है। यहां वर्तमान में वृक्ष के नीचे भगवान बिल्वकेश्वर का शिव¨लग स्थापित है। शिव¨लग के दक्षिण भाग में मणि से भूषित मस्तक वाला अश्वतर नाम का महानाग है। जो अक्सर शिव¨लग के ईदगिर्द आकर कई बार दिखाई देता है। कोट पौराणिक बिल्केश्वर महादेव मंदिर की बहुत मान्यता है। यहां गौरीकुंड स्नान बेलपत्र चढ़ाने मात्र से महादेश प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। गौरीकुंड के जल के स्मरण मात्र से गंगा स्नान का फल मिलता है। शिव की दिल श्रद्धा से भक्ति करने वाले को ही महानाग के दर्शन होते हैं। शिवरात्रि श्रावण मास में यहां भगवान शंकर का रुद्राभिषेक अनुष्ठान किया जाता हैं। श्रावण माह में यहां भगवान बिल्वकेर्श्वर के दर्शन करने पहुंचते हैं। मंदिर प्रबंध समिति की ओर से यहां कांवड़ियों के लिए निश्शुल्क रहने खाने का प्रबंध किया गया है। प्रतिदिन सैंकड़ों कांवड़िये भगवान बिल्वकेश्वर के दर्शन कर यहां स्थित गौरी कुंड में स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं। बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर पहुंचने के लिए हरिद्वार रेलवे और बस स्टेशन से करीब डेढ़ किमी की दूरी पर है। ट्रेन, बस या निजी वाहन से हरिद्वार पहुंचने पर यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। मंदिर तक पक्की सड़क है। स्थानीय स्तर पर आटो, टेंपो, रिक्शा और तांगा सभी तरह के वाहन यहां के लिए आसानी से मिल जाते हैं। धर्मनगरी हरिद्वार के मंदिरों में सावन शुरू होते ही भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। जगहजगह भोले के भक्त जलाभिषेक करते हैं। हरिद्वार के बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर को आदिकाल से ही भोलेनाथ धाम के रूप में जाना जाता है। भगवान शिव के जीवन से जुड़ी कई कथाओं में हरिद्वार का जिक्र प्रमुखता से होता है। बाबा भोलेनाथ ने समुद्र मंथन से निकला विष पीकर हमें अमृत प्रदान किया है। उसी प्रकार श्रावण का महीना भी रस से भरा है, जो हमें वर्षा की बूंदों के रूप में जल देकर हमारे भीतर जीवन का संचार करता है। इस मास में प्रकृति का अलग ही नजारा देखने को मिलता है। भूमंडल में चारों ओर हरेभरे पत्ते, नई कोपलें आती हैं। नदी, नाले, कूपों में जल भर जाता है। मानो पृथ्वी भी तृप्त होकर हरी ओढ़नी ओढ़ आनंद से झूमने लगती है। ऐसा ही भगवान शिव का प्रिय रमणीय स्थल है हरिद्वार के पास स्थित बिल्व पर्वत। यहां मां पार्वती ने कठोर तप के बल पर भगवान शिव को पति रूप में पाया था। भोले बाबा को एक नहीं दो बार इस पवित्र स्थल पर अपनी अर्द्धांगिनी की प्राप्ति हुई थी। प्रथम बार दक्षेश्वर के राजा दक्ष की पुत्री सती के रूप में और दूसरी बार हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में। देव ऋषि नारद के कहने पर हरिद्वार से पश्चिम में हर की पौड़ी से कुछ दूरी पर स्थित बिल्व पर्वत पर आकर देवी पार्वती ने कठोर तप किया था। आज इस स्थान पर बिल्वकेश्वर महादेव का प्रतिष्ठित मंदिर स्थित है। भोले बाबा शेषनाग के नीचे लिंग रूप में विराजते हैं। मान्यता है कि देवी पार्वती इस स्थान पर बेलपत्र खाकर अपनी भूख शांत करती थी। उनकी प्यास को बुझाने के लिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से गंगा की जलधारा प्रकट की थी। आज के समय में यह स्थान बिल्वकेश्वर मंदिर से करीब 50 कदम की दूरी पर गौरी कुंड के नाम से विख्यात है। जानकार कहते हैं कि मां पार्वती तप के दौरान इसी गौरी कुंड में स्नान करती थीं और इसी कुंड के जल को ग्रहण करती थीं। आज गौरी कुंड में स्नान करने के लिए भक्त दूरदूर से आते हैं। सावन और मकर संक्रांति पर श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है। इस स्थल पर आने वाला भोलेभंडारी से मुंह मांगा वर प्राप्त करता है। कुंवारी कन्याएं अभिषेक करने के बाद बेलपत्र चढ़ाएं तो उन्हें मन पसंद जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। जो भी जातक प्रेम और श्रद्धा भाव से बिल्वकेश्वर महादेव पर केवल बेलपत्र अर्पित कर दे, उसे 1 करोड़ साल तक मिलता है स्वर्ग के ऐश्वर्य भोगने का सुख। बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर में दो बार होता है भोले बाबा का पूजन। प्रातः 5 बजे गौरी कुंड से पवित्र जल लाकर शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता है। फिर उनके गले के हार नाग देवता को प्रतिष्ठित कर शृंगार किया जाता है।  बिल्व पर्वत का सारा वातावरण सदा शिवमय रहता है। इस बार कोरोना संक्रमण के कारण सभी मंदिरों में श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति नहीं है।

 

 

 

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